Thursday, December 25, 2014

रंग लाल के प्रेमिल क्षण
















शहरोज़




पिछले दिनों हमारे युवा विधायक व बिहार के पंचायती राज्य मंत्री विनोद प्रसाद यादव की फेस बुक वाल पर समारोह को लेकर हुई बैठक की तस्वीरें दिखीं, तो सूरज की तरह रंग लाल सामने आ गया। इसी रंग ने तो हमेशा उष्मा और ऊर्जा दी है। तब वेदनारायण सिंह यानी वेदनारायण बाबू हेड मास्टर थे। अचानक एक दोपहर हमारी नौवीं की क्लास में आ धमके। उनकी बहुत दहशत थी। तब यही समझते थे। अब इसे सम्मान कहता हूं। वेदनारायण बाबू बोले, बच्चो कुछ भी पूछो। और किसी से कभी घबराओं नहीं। लेकिन यह भी कहा, सवाल करना बहुत सरल होता है, जवाब देना कठिन। उनसे ग्रहण किया आत्मविश्वास, तो मेरी पहली लघु कथा के संशोधक गुरुवर पाठक जी की सहजता, सिराज सर से मिली बेतकल्लुफी, मौलाना फकरू की बेबाकी और नसीम सर से हासिल तीक्ष्णता ने पल-पल मेरे होने को सार्थक किया है। इसके अलावा शायद ही कोई होगा जिसे शशिनाथ सर का गामा-बीटा, तो गोपी बाबू की अंग्रेजी का ठेठ देशज लहजा याद न हो। गर रामअवतार बाबू न होते, तो मुझ जैसे डेढ़-पसली को कौन एनसीसी में लेता। लेकिन जब हमलोगों की टीम पुराने कोल्ड स्टोरेज के पास मोरहर नदी किनारे फायरिंग के लिए पहुंची, तो दस में से नौ फायरिंग निशाने पर का कमाल इसी नाजुक कंधे का रहा था। 

स्कूल की स्मारिका के प्रकाशन पर रंग लाल बार-बार प्रेमिल कर रहा है। भूलते-भागते उन क्षणों की स्मृतियों में लाल रंग के क्रोध और आवेश का मानो लोप ही हो गया हो। कभी स्कूल की लाइब्रेरी, तो कभी आंगन की तुलसी। बुलाती है बार-बार। उसी तुलसी के पास पहली बार मैंने अंग्रेजी में बिदाई संदेश पढ़ा था, पायजामें में घुसी टांग लगातार कांप रही थी। इसी स्कूल का छात्र होने के नाते ट्रेनिंग कॉलेज में आयोजित अनुमंडल युवा उत्सव में भाषण देकर अव्वल आया था। स्कूल में होनेवाली मिलाद की शीरनी, तो सरस्वती पूजा के प्रसाद की मिठास अब कहां मिलेगी। दरअसल यह मिठास मेरे शहर की हर गली-कूचे में है। मस्जिद की अजान से हटिया मोहल्ला में पौ फटती है, तो लोदी शहीद में मंदिर की घंटियों के साथ ही उजास फैलता है।


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