आओ हमसब मिल आज एक स्वर गाएँ,
- रोते आएँ, पर गाते-गाते जाएँ !
ऐसी पंक्तियों के रचयिता और निराला के संग झूमने वाला भी हमारे इलाके में हुआ.आप ठीक समझ रहे हैं मैं जानकी जी की ही बात कर रहा हूँ. 1916 में डुमरिया प्रखंड के मैगरा ग्राम में जन्मे छायावादोत्तर काल के सुविख्यात कवि आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री, जिन्हें उत्तर प्रदेश सरकार ने भारत भारती पुरस्कार से सम्मानित भी किया है ,आप उन थोड़े-से कवियों में रहे हैं, जिन्हें हिंदी कविता के पाठकों से बहुत मान-सम्मान मिला है। लेकिन ये देख कर बहुत ग्लानि होती है की आज हम में से कोई एकाध ही उनसे परिचित होगा. उनका माया-ग्राम आज बदहाली का शिकार है.शाश्त्री जी अब मुजफ्फरपुर में रहते हैं और काफी वृध्द हो चुके हैं.,लेकिन इलाके की साहित्य-कला संस्कृति की गली में कोई सुगबुगाहट नहीं है.काश हम भी और देशों की तरह अपनी विरासत को संजोना और सुरक्षित रखना जान पाते.
साहित्य वाचस्पति, विद्यासागर, काव्य-धुरीण तथा साहित्य मनीषी आदि अनेक उपाधियों नवाज़े गए आचार्य का काव्य संसार बहुत ही विविध और व्यापक है. प्रारंभ में उन्होंने संस्कृत में कविताएँ लिखीं। फिर महाकवि निराला की प्रेरणा से हिंदी में आए।
कविता के क्षेत्र में उन्होंने कुछ सीमित प्रयोग भी किए और सन चालीस के दशक में कई छंदबद्ध काव्य-कथाएँ लिखीं, जो गाथा नामक उनके संग्रह में संकलित हैं।इसके अलावा उन्होंने कई काव्य-नाटकों की रचना की . राधाजैसा श्रेष्ठ महाकाव्य रचा।परंतु शास्त्री की सृजनात्मक प्रतिभा अपने सर्वोत्तम रूप में उनके गीतों और ग़ज़लों में प्रकट होती है।
इस ह्नेत्र में उन्होंने नए-नए प्रयोग किए जिससे हिंदी गीत का दायरा काफी व्यापक हुआ।वैसे, वे न तो नवगीत जैसे किसी आंदोलन से जुड़े, न ही प्रयोग के नाम पर ताल, तुक आदि से खिलवाड़ किया।छंदों पर उनकी पकड़ इतनी जबरदस्त है और तुक इतने सहज ढंग से उनकी कविता में आती हैं कि इस दृष्टि से पूरी सदी में केवल वे ही निराला की ऊंचाई को छू पाते हैं।
गाथा ,राधा रूप-अरूप, तीर तरंग, शिवा, मेघ-गीत, अवंतिका, कानन, अर्पण,उत्तम-पुरुष, पाषाणी आदि इनके मुख्य काव्य संग्रह हैं। त्रयी उनकी आलोचना पुस्तक है.
हिन्दुस्तान के स्थानीय संवादाता ने सबका ध्यान उनके गाँव की तरफ दिलाया.आप खुद उस रपट को पढ़ें..संपादक
1 comment:
Bhaiya........ aapne ek din me hi kaphi kuch is blog par dal diya,kamal hai Nabvak Hamjapuri ji,bachhu ji,Tisna saab...sach kahu to maza aa gaya .. ..........sabse badhiya un famous logo ka photo arrange karna raha .......ek brashmdev shastri, Jaglal Mahto ji (dead),shansk shekhar sharma(alive), rah gaye...shanshak ji ne kai kavya sangrah likha hai par.....paise ke abhav me publish nahi hua hai ..........Maigra librery aur janki ballabh ji par mere paas visad samagri hai .....prayas karunga.Sherghati kshetra ke khanij sampada par bhi mera servey hai ....prayas karunga ke publish ho..........
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