गया जिला का पहला व्यक्ति बना बिहार का मुख्यमंत्री
बिहार में मुसहर समुदाय की स्थिति छत्तीसगढ़ और झारखंड के विलुप्त हो रहे आदिवासी बिरहोर से उन्नीस नहीं, तो बीस भी नहीं कहा जा सकता। यही सबब है कि इन्हें अब महा दलित में शुमार किया जाता है. अब भला कोई कैसे सोच सकता है कि ऐसे दमित और निर्बल समाज का कोई व्यक्ति राज्य सत्ता के सर्वोच्च शिखर तक जाएगा। और ऐसा व्यक्ति जो बंधुआ बाल मज़दूर भी रहा हो. लेकिन बाल मजदूरी से जीवन की शुरुआत करने वाले जीतन राम मांझी ने स्वाध्याय से पढाई की, फिर दफ्तारों में क्लर्की करते-करते विधायक और मंत्री बने। अब इस 20 मई 2014 को बिहार के 23 वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.यह वर्ग और जाति संघर्ष की लड़ाई लड़ रहे कार्यकर्ताओं की सामाजिक न्याय की विजय है ही. यह मगध और हमारे ज़िला गया के लिए गौरव का क्षण भी है. ज़िले से पहली बार किसी ने यह ताज पहना है. बिहार के सीएम बनने से पहले जीतन राम नीतीश कुमार सरकार में अनुसूचित जाति, जनजाति कल्याण मंत्री थे.
मुसहर मज़दूर पिता का बंधुआ बाल श्रमिक
उनका जन्म बिहार के गया जिले के महकार गांव में एक मजदूर परिवार में 6 अक्टूबर 1944 को हुआ।हालत रोज़ कुंआ खोदने और पानी पीने की थी. बेबस मजदूर पिता रामजीत राम मांझी ने बेटे को जमीन मालिक के यहां काम पर लगा दिया।मालिक के बच्चों को पढ़ते देख नन्हे जीतन में भी पढ़ने की ललक जागी। वह उनकी कॉपी-किताबों को बस निहारा करता।मन ही मन लिखने और पढ़ने की उड़ान लेता। कभी ज़मीन पर ही आड़े-तिरछे अक्षर गोदता रहता। एक दिन मालिक के बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक ने उसकी इस हरकत को पकड़ लिया। जब उसे पास बुलाया तो बंधुआ बाल मज़दूर जीतन कांपते गोड़-हांड़ लिए उनके सामने खड़ा हो गया. लेकिन यह क्या उस टीचर ने बालक के सर पर स्नेहिल स्पर्श दिया तो जीतन की पहली जीत यहीं से शुरू हो गयी.
हौसले की प्रबलता ने किया विरोध को पराजित
शिक्षक ने उसे पढ़ने को प्रोत्साहित किया, वहीं पिता भी सहयोग को आगे बढे. लेकिन मुसहर का बच्चा स्कूल जाए, यह समाज को कैसे स्वीकार होता। लेकिन हौसले की प्रबलता ने तमाम विपरीतताओं को धकिया दिया।सामाजिक विरोध के बावजूद उन्होंने अपनी पढ़ाई शुरू की। हालाँकि सातवीं कक्षा तक की पढ़ाई बिना स्कूल गए उन्हें पूरी करनी पड़ी. बाद में उन्होंने हाई स्कूल में दाखिला लिया और सन् 1962 में सेकेंड डिवीजन से मैट्रिक पास किया। 1966 में गया कॉलेज से इतिहास विषय में स्नातक की डिग्री हासिल की।
पहली बार बने विधायक
परिवार को आर्थिक सहायता देने के लिए आगे की पढ़ाई रोक कर उन्होंने एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क की नौकरी शुरू कर दी और 1980 तक वहां काम किया। उसी वर्ष नौकरी से इस्तीफा देने के बाद वह राजनीति से जुड़ गए।इसी वर्ष विधायक चुने गये। इसके बाद वो 1990 और 1996 में भी विधायक बने. 2005 में बाराचट्टी से बिहार विधान सभा के लिए निर्वाचित हुए ।1983 से 1985 तक वो बिहार सरकार में उपमंत्री रहे, 1985 से 88 तक एवं पुनः 1988 से 2000 तक राज्यमंत्री रहे।2008 में उन्हें केबिनेट मंत्री चुना गया.
दलितों के लिए विशेष काम
बिहार में दलितों के लिए उन्होंने विशेष तौर पर काम किया। उनके प्रयास से दलितों के लिए बजट में खासा इजाफा हुआ। वर्ष 2005 में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए बिहार सरकार का बजट 48 से 50 करोड़ रुपये का होता था, जो कि 2013 में 1200 करोड़ रुपये का हो गया। वर्ष 2005 में बिहार का जितना संपूर्ण बजट हुआ करता था, आज उतना सिर्फ दलित समुदाय के लिए होता है।
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